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को अ॒द्धा वे॑द॒ क इ॒ह प्र वो॑चद्दे॒वाँ अच्छा॑ प॒थ्या॒३॒॑ का समे॑ति। ददृ॑श्र एषामव॒मा सदां॑सि॒ परे॑षु॒ या गुह्ये॑षु व्र॒तेषु॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ko addhā veda ka iha pra vocad devām̐ acchā pathyā kā sam eti | dadṛśra eṣām avamā sadāṁsi pareṣu yā guhyeṣu vrateṣu ||

पद पाठ

कः। अ॒द्धा। वे॒द॒। कः। इ॒ह। प्र। वो॒च॒त्। दे॒वान्। अच्छ॑। प॒थ्या॑। का। सम्। ए॒ति॒। ददृ॑श्रे। ए॒षा॒म्। अ॒व॒मा। सदां॑सि। परे॑षु। या। गुह्ये॑षु। व्र॒तेषु॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:54» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:24» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (इह) इस विज्ञान में परमात्मा और धर्म को (अद्धा) साक्षात् (कः) कौन (वेद) जाने और (कः) कौन पुरुष (देवान्) विद्वानों को (अच्छ) उत्तम प्रकार (प्र, वोचत्) उपदेश देवे (का) कौन (पथ्या) उत्तम मार्ग से युक्त (देवान्) विद्वानों को (सम्, एति) प्राप्त होती है और (एषाम्) इन विद्वानों के (परेषु) सूक्ष्मों को (अवमा) नीचे भाग में वर्त्तमान (सदांसि) वस्तुएँ (गुह्येषु) गुप्त अर्थात् रक्षा करने योग्य (व्रतेषु) सत्यभाषण आदि नियमों में (या) जो ज्ञान और सत्यभाषण आदिकों को (ददृश्रे) देखें, वे पूर्वोक्त सम्पूर्ण को जानें ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस संसार में विरला ही ऐसा मनुष्य होता है कि जो परमात्मा को जान और उसकी आज्ञा के अनुकूल आचरण स्वीकार करके सत्य का उपदेश देता है, ऐसा कोई विद्वान् जो इस संसार में इस लोक और परलोक का ज्ञाता होवे ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या इह परमात्मानं धर्मञ्चाद्धा को वेद को देवानच्छ प्र वोचत्का पथ्या देवान्त्समेति य एषां परेष्ववमा सदांसि गुह्येषु व्रतेषु या ज्ञानसत्यभाषणादीनि ददृश्रे ते पूर्वोक्तं सर्वं विजानीयुः ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कः) (अद्धा) साक्षात् (वेद) जानीयात् (कः) (इह) अस्मिन् विज्ञाने (प्र) (वोचत्) उपदिशेत् (देवान्) विदुषः (अच्छ) सम्यक्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (पथ्या) पथोऽनपेता (का) (सम्) (एति) प्राप्नोति (ददृश्रे) पश्येयुः (एषाम्) (अवमा) अर्वाचीनानि (सदांसि) वस्तूनि (परेषु) सूक्ष्मेषु (या) यानि (गुह्येषु) गुप्तेषु रक्षितव्येषु (व्रतेषु) सत्यभाषणादिनियमेषु ॥५॥
भावार्थभाषाः - अस्मिञ्जगति विरल एव मनुष्यो भवति यः परमात्मानं विदित्वा तदाज्ञानुकूलमाचरणं स्वीकृत्य सत्यमुपदिशति कश्चिदेव विद्वान् योऽत्र पराऽवरज्ञः स्यात् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या जगात एखादाच माणूस असतो जो परमेश्वराला जाणून त्याच्या आज्ञेनुसार आचरण करून सत्याचा उपदेश देतो. असा एखादाच विद्वान असतो जो या जगात लोक व परलोकाचा ज्ञाता असतो. ॥ ५ ॥